गौरव का विषय हरदोई निवास :-
जनपद-हरदोई एक दृष्टि में :-
हरदोई की भौगोलिक स्थिति (अक्षांश -देशांतर )27.42°N 80.12°E है। इसकी समुद्र तल से औसत ऊँचाई 134 मीटर (440 फ़ुट) है। हरदोई लखनऊ (उत्तर प्रदेश की राजधानी) से 110 किमी और नई
दिल्ली (भारत की राजधानी) से 394 किमी दूरी पर स्थित है।
हरदोई जिले की पूर्वी सीमा गोमती नदी बनाती है उत्तर-पश्चिम
में शाहजहाँपुर से रामगंगा मे मिलने वाली एक छोटी नदी अलग करती है इसके बाद रामगंगा इसकी दक्षिणी सीमा बनाते हुए संग्रामपुर के पास गंगा मे मिल
जाती है और इस प्रकार गंगा इसकी पश्चिमी सीमा बनाती है इसके उत्तर में खीरी
लखीमपुर है, दक्षिण
में लखनऊ व उन्नाव जिले हैं। वस्तुतः गंगा तथा गोमती के बीच एक लगभग सम्भुजाकार आकृति बनती है उत्तर -पश्चिम से
दक्षिण -पूर्व की अधिकतम दूरी लगभग १२५ किमी और औसत चौड़ाई लगभग ७४ किमी है। हरदोई
की एक भौगोलिक विशेषता है इसका विशाल ऊसर जो जिले के मध्य से रेलवे लाइन के दोनो ओर सण्डीला से शहाबाद तक फ़ैला है हरदोई पूर्णतया
समतल है सबसे ऊँचा स्थान गोमती नदी के पास पिहानी है जिसकी समुद्र
तल से ऊँचाई 149.35 मीटर (४९० फ़ीट) है।
यातायात:-
हरदोई तक पहुंचने के लिए रेल और सड़क मार्ग
से पहुंचा जा सकता है। लखनऊ से हरदोई तक पहुंचने में करीब ढेड़ घंटा लगता है।
हरदोई पुराने अवध -रुहेलखण्ड रेलवे के लखनऊ लाइन पर स्थित है, वर्तमान समय में इसे उत्तर रेलवे के रूप में
जाना जाता है उत्तर रेलवे के मुरादाबाद मंडल द्वारा इसका संचालन किया जाता है
जम्मू-हावड़ा,
अमृतसर -हावड़ा, उत्तर बिहार अर्थात छ्परा हाजीपुर
मुज्जफ़रपुर से होकर जाने वाली मेल एक्स्प्रेस सवारी गाड़ियाँ यहाँ रुककर जाती हैं
l
.सड़्क मार्ग से
आसपास के सभी जिलों से सीधा जुड़ा है प्रायःसभी कस्बे सड़्कों से जुड़े हैंही साथ
ही गावों में भी आवागमन के लिए सड़के हैं l
नदियाँ और घाट:-
नदियाँ --हरदोई में बहने वाली नदियाँ गंगा,
रामगंगा, गरुणगंगा (गर्रा), सुखेता, सई,
घरेहरा,नीलम
,गोमती आदि हैं इन नदियों पर पुराने समय
में सडके न होने के कारण निम्न्लिखित घाटों से आवागमन तथा व्यापार होता था
1. भट्पुर घाट --गोमती नदी पर --सण्डीला के
भटपुर गाँव के पास l
2. राजघाट --गोमती नदी पर ---सण्डीला के बेनीगंज
के पास लगभग ५किमी,
यह घाट नीमसार
से सण्डीला होते हुए लखनऊ को जोड़ता था दूसरा मार्ग कछौना और माधोगंज को जोड़ता था
l
3. महादेव घाट--सण्डीला तहसील के महुआकोला गाँव
के पास --नीमसार को जोडता है l
4. हाथीघाट -- गोमती पर-- सण्डीला के कल्यान मल
के पास--- मुख्य रूप से कोथावाँ के पास हत्याहरन के मेले के लिये प्रयोग किया जाता
था l
5. दधनामऊ --गोमती पर हर्दोई के प्रगना गोपामऊ
के पास भैंसरी गाँव के पास यह घाट फ़तेह्गढ़ नानपारा तथा सीतापुर को जोड़ता था अब
यहाँ सड़क पुल है l
6. कोल्हार घाट गोमती नदी -- शाबाद तहसील के
कोल्हार गाँव के पास --सड़्क पिहानी होते हुए मोहमम्दी को जाती है l
7. राज घाट गर्रा नदी --शहाबाद तहसील में पाली
के पास -पाली शहाबाद के बीच l
8. राजघाट --गंगा नदी पर -- बिलग्राम तहसील में
--फ़त्तेहपुर और कन्नौज को जोड़्ता था l
9. देउसी घाट--गम्भीरी नदी पर बिलग्राम तहसील
में l
पौराणिकता:-
स्थानीय लोगों का मानना है कि पहले इस जगह को हरिद्रोही के नाम
से जाना जाता था। हिन्दी में जिसका अर्थ ईश्वर का विरोधी होता है। पौराणिक कथा के अनुसार, पूर्व समय में यहाँ पर राजा हिरण्यकशिपु का शासन था। राजा की भगवान के
प्रति बिल्कुल भी आस्था नहीं थी और वह स्वयं को भगवान मानता था। वह चाहता था कि सब लोग
उसकी पूजा करें, मगर स्वयं
राजा का पुत्र प्रह्लाद ने उसका विरोध किया। जिस कारण
हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को कई बार मारने की कोशिश की। लेकिन वह सफल नहीं हो
पाया।पर उसका
बेटा प्रहलाद जो कि विष्णु भक्त था, ने हिरणकश्यप की इच्छा के
विरूद्ध ईश्वर की पूजा जारी रखी। हिरणकश्यप ने प्रहलाद को प्रताड़ित करने हेतु कभी
उसे ऊँचे पहाड़ों से गिरवा दिया, कभी जंगली जानवरों से भरे वन में अकेला छोड़ दिया पर प्रहलाद
की ईश्वरीय आस्था टस से मस न हुयी और हर बार वह ईश्वर की कृपा से सुरक्षित बच
निकला। अंततः हिरणकश्यप ने अपनी बहन होलिका जिसके पास एक जादुई चुनरी थी, जिसे ओढ़ने के बाद अग्नि में
भस्म न होने का वरदान प्राप्त था, की गोद में प्रहलाद को चिता में बिठा दिया ताकि प्रहलाद भस्म
हो जाय। पर होनी को कुछ और ही मंजूर था, ईश्वरीय वरदान के गलत प्रयोग के
चलते जादुई चुनरी ने उड़कर प्रहलाद को ढक लिया और होलिका जल कर राख हो गयी और
प्रहलाद एक बार फिर ईश्वरीय कृपा से सकुशल बच निकला। दुष्ट होलिका की मृत्यु से
प्रसन्न नगरवासियों ने उसकी राख को उड़ा-उड़ा कर खुशी का इजहार किया। कहा जाता है
कि जिस कुण्ड में होलिका जली थी, वो आज भी
श्रवणदेवी नामक स्थल पर हरदोई में स्थित है। मान्यता है कि आधुनिक
होलिकादहन और उसके बाद अबीर-गुलाल को उड़ाकर खेले जाने वाली होली इसी पौराणिक घटना
का स्मृति प्रतीक है।
अधिक मास अर्थात पुरुषोत्तम मास भगवान विष्णु ने मानव के
पुण्य के लिए ही बनाया है। पुराणों में उल्लेख है कि जब हिरण कश्यप को वरदान मिला
कि वह साल के बारह माह में कभी न मरे तो भगवान ने मलमास की रचना की। जिसके बाद ही नरसिंह अवतार लेकर भगवान ने उसका वध किया।
दूसरी कथा के अनुसार -बली नाम का एक प्रतापी राजा था, उसके दादा प्रह्लाद ने तपस्या की और अमर राज
प्राप्त किया, बली का पिता विरोचन भी नेक पुरुष था ,राजा बलि ने अश्वमेघ यग्य और अग्नि होम किए.
उसने इस तरह ९९ यज्ञ संपन्न कर दिए. राजा बलि का यश चारों और फैलने लगा और वह
इन्द्रलोक का राजा बनने की सोचने लगा. राजा बलि ने १०० वें यज्ञ का आयोजन रखा और
इसके लिए निमंन्त्रण भेजे. सारी नगरी को इस अवसर के अनुरूप सजाया गया। सारी नगरी
को न्योता दिया गया।भगवान ने सोचा कि राजा बलि घमंड में आकर कहीं इन्द्र का राज न
लेले. भगवान ने बावन अवतार का रूप धारण किया। अपना शरीर ५२ अंगुल के बराबर लंबा
किया और राजा बलि की नगरी के समीप धूना जमा लिया। राजा बलि ने यज्ञ शुरू किया और
मंत्रियों को हुक्म दिया कि नगरी के आस पास कोई भी मनुष्य यहाँ आए बिना न रहे.
मंत्रियों ने छानबीन की तो पता चला कि भगवान रूप बावन अपनी जगह बैठा है। मंत्रियों
के कहने पर वह नहीं आए. तब राजा बलि ने ख़ुद जाकर महाराज से निवेदन किया। महाराज
ने राजा से कहा कि मैं आपके नगर में तब प्रवेश करुँगा कम से कम तीन(कदम) जमीन मुझे दान करो , इस पर
राजा बलि को हँसी आ गई और कहा की शर्त मंजूर है।
राजा बलि का वचन पाकर भगवान ने अपनी देह को इतना
लंबा किया कि पूरी पृथ्वी को दो(कदम) में ही नाप लिया। और पूछा कि तीसरा कदम कहाँ
रखू. इस पर राजा बलि घबरा गए और थर-थर कांपने लगे. राजा बलि ने कहा कि यह तीसरा
कदम मेरे सर पर रखें. इस पर भगवान ने तीसरा पैर राजा बलि के सर पर रख कर उसको
पाताल भेज दिया. कहते हैं कि जब
भगवान ने वामन अवतार धारण कर पृथ्वी का नाप किया तो पहला कदम मक्का मदीना में रखा गया था। जहाँ अभी मुसलमान पूजा करते हैं
और हज करते हैं। दूसरा कदम कुरुक्षेत्र में रखा था जहां अभी
पवित्र नहाने का सरोवर है।फिर पूछा कि तीसरा कदम कहाँ रखू. इस पर राजा बलि घबरा गए
और थर-थर कांपने लगे. राजा बलि ने कहा कि यह तीसरा कदम मेरे सर पर रखें. इस पर
भगवान ने तीसरा पैर राजा बलि के सर पर रख कर उसको पाताल भेज दिया.
गुरदास जी ने भी लिखा है :-
बलि राजा घरि आपणे अंदरि बैठा जग करावै |
बावन रूपी आइआ चारि बेद मुखि पाठ सुणावै |
उपर्युक्त कथानको:- के अनुसार हरदोई की उत्पत्ति हरिद्रव्य
से हुई है। जिसका अर्थ दो भगवान होता है। यह दो भगवान वामन भगवान और नरसिम्हा भगवान है
जिन्हें हरिद्रव्य कहा जाता है। जिसके पश्चात्इसजगह का नाम हरदोई पड़ा। हरदोई हरिद्वेई या हरिद्रोही यूं तो हरदोई को हरिद्वेई भी
कहा जाता हैक्योंकि भगवान ने यहां दो बार अवतार लिया एक बार हिरण्याकश्यप वध
करने के लिये
नरसिंह भगवान रूप में तथा दूसरी बार भगवान बावन रूप रखकर
परन्तु सबसे अधिक विस्मयकारी तथ्ययह है कि विजयादशमी पर्व पर सम्पूर्ण हरदोई नगर में कहीं भी रावण दहन का कोई कार्यक्रम नहीं होता!
जिले का इतिहास महाभारत काल में- कृष्ण के भाई बलराम ब्राह्मणों के साथ
पवित्र स्थानों के दर्शन के लिए निकले, नीमखार की ओर जाते हुए, उन्होने देखा कि कुछ
ऋषि पवित्र ग्रन्थों का पाठ सुनने में निमग्न हैं और उनका स्वागत -सत्कार उन्होंने नहीं किया तो बलराम ने
क्रोध वश ऋषि के सिर को कुश नामक घास से काट दिया और फ़िर पश्चाताप से भर कर उस स्थान को बिल नामक दैत्य से छुट्कारा दिलाया ;
हरदोई लखनऊ मंडल कर एक ज़िला है जो ऐतिहासिक महत्व का जनपद है
जो भक्त प्रह्लाद की नगरी के रूप में भी प्रसिद्ध है। किंवदंती
है कि भगवान ने नरसिंह अवतार लेकर इसी जगह भक्त प्रहलाद की रक्षा की
थी। क़ादिर बख्श पिहानी, ज़िला हरदोई के रहने वाले इन्होंने कृष्ण की प्रशंसा में काव्य-रचना की जो अति सुन्दर
एवं मधुर है।
ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्थान काफ़ी
महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इसमें मुग़ल और अफ़ग़ानशासकों के बीच कई युद्ध हुए है। बिलग्राम और सांदी शहर के मध्य हुए युद्ध में हुमायूँ को शेरशाह सूरी ने हराया था।
1904 के गजेटियर में प्रथम
स्वतंत्रता आन्दोलन 1857के दौरान धटित घटनाक्रम के रूप में लिखा है कि
हरदोई के कटियारी क्षेत्र का तालुकेदार हरदेव बक्श फतेहगढ के स्वतंत्रता संग्राम
सेनानियों के लगातार भय के बावजूद पूरे संघर्ष में वफादार बना रहा।
(गजेटियर -हरदोई) |
( ये है खैरुद्दीनपुर वर्तमानमें खद्दीपुर राजा का महल-कटियारी)
मुख्य सेनानायक के निर्देश पर ब्रिटिश सेना की तीन टुकडियां उस समय उत्तर पश्चिम अवध में विद्रोहियों के विरूद्ध कार्यरत थी। इनमें से एक को ब्रिगेडियर हाल के अधीन फतेहगढ से जनपद मल्लावां में होते हुये सीतापुर की ओर बढने का आदेश था। दूसरी को ब्रिगेडिर बारकर के नेतृत्व में लखनउ से चलकर हाल से जा मिलने का आदेश था । बारकर 7 अक्टूबर को सण्डीला पहुंचा अगले दिन उग्र आक्रमण किया । एक निराशापूर्ण युद्व के पश्चात स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को पूर्ण रूप से पराजित होना पडा । बारकर ने सण्डीला के आसपास के क्षेत्र पर नियंत्रण करने के लिये इसे केन्द्र बना लिया। अक्टूबर की 21 तारीख को उसने तूंफानी हल्ला बोलकर विरवा(संडीला पासी समाज की राजधानी था जो गोमती और सईं नदी के दोनों किनारों तक फैला था जो लखीमपुर के धौरहरा ,मितौली तक था इसी लिए यहाँ का पासी समाज राज पासी के नाम से जाना जाता है इम्पीरियल गजेटियर ऑफ़ इण्डिया के अनुसार १८८१ की जनगना में पासियो की संख्या ७२३२६ थी -और यह भी कहा है की पासी बहुत शक्तिशाली है ) के किले को अपने अधिकार में ले लिया। हाल की सेना 28 तारीख को रूइया में बारकर से जाकर मिली । १८५७ के स्वंत्रता संग्राम के समय अंग्रेजी फौज ने मल्लावां को हेड क्वाटर बना रखा था। लखनऊ में विद्रोह शुरू होने की खबर मिली तो यहाँ भी अंग्रेज अफसर सतर्क हो गए। रुइया नरेश का ही डर था कि मल्लावां के डिप्टी कमिशनर डब्लू सी चैपर को जब विद्रोह का समाचार मिला तो उन्होंने अंग्रेज सेना के सचिव कैप्टन हचिनशन को माधौगंज की ओर न जाने की सलाह दी, लेकिन हचिनशन अपनी जिद पर अड़े रहे चैपर की सलाह को वह नहीं माने और आगे बढ़ते रहे, लेकिन नरपति सिंह और बरुआ के गुलाब सिंह ने सेना के साथ अंग्रेजो के इस कदर दांत खट्टे किये की करीब डेढ़ वर्षो तक फिरंगी हुकूमत के हरदोई जिले में पैर नहीं जम सके नानासाहब पेशवा का एक दूत रोटी का टुकड़ा और कमल का फूल लेकर रुइया गढ़ी स्थित नरपति सिंह के दरबार में पहुंचा। कमल क्रांति का चिन्ह व रोटी का टुकडा सभी जाति -वर्ग में भाईचारे व संगठन का प्रतीक था । रुइया नरेश ने इसे स्वीकार करते हुए नाना साहब को पैगाम भेजा और संकल्प लिया की जब तक जिन्दा रहूँगा तब तक देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए संघर्ष करता रहूँगा । नरपति सिंह ने सगे भाई बेनी सिंह को मुख्य सेनापति बनाकर तीन कमान बनाई , जिसका नेतृत्व बस्ती सिंह, लखन सिंह व बद्री ठाकुर कर रहे थे । 29 मार्च, 1857 को जब बैरकपुर छावनी में सैनिक मंगल पाण्डेय ने विद्रोह कर दिया, तब नरपति सिंह के इशारे पर ही 15 मई 1857 को संडीला में भीषण युद्ध हुआ, जिसे दबाने के लिये अंग्रेजी हुकूमत के तत्कालीन सचिव हचिसन को संडीला भेजा गया । वह आगे बढ़ ही रहा था, किन्तु मल्लावां के डिप्टी कमिशनर से खबर मिली कि लखनऊ के विद्रोही माधौगंज के रुइया दुर्ग में एकत्र हो रहे हैं, यह सूचना पाकर हचिनशन पीछे भागा और नरपति सिंह ने अपने आस-पास के अंग्रेजों को मारना शुरू कर दिया। इस घटना का हरदोई (गजेटियर के पृष्ठ संख्या 143 पर उल्लेख है, फ्रीडम स्टेल इन उत्तरप्रदेश के पृष्ठ संख्या 28 )पर लिखा है की नरपति सिंह को अपने दो पड़ोसी बहुत खटकते थे,पहला तो जिला हेड क्वाटर मल्लावां का डिप्टी कमिशनर डब्लू सी चैपर और दूसरा गंजमुरादाबाद का नवाब जो अंग्रेजों के लिये जासूसी करता था। 3 जून 1857 रुइया नरेश ने गंजमुरादाबाद पर आक्रमण कर नवाब को पकड़ लिया तथा उसके भतीजे को नवाब बना दिया । इससे जब डिप्टी कमिशनर चैपर अक्रामक हो उठा तो 8 जून 1857 को नरपति सिंह कुछ क्रांतिकारियों को लेकर मल्लावां पर चढ़ाई कर दी । तब चैपर भागकर संडीला चला गया। क्रांतकारियों ने बड़ी संख्या में अंग्रेजों का कत्लेआम किया और देशी सैनिकों को कैद कर लिया तथा तहसील, अदालत व थाना फूंक कर भवन ढहा दिया ।बरबस के सोमवंशी मुआफ़िदारो के मुखिया माधोसिंह (जिसे अवध को शासन में मिलाने के बाद अंग्रेजों ने थानेदार नियुक्त किया था) पर आक्रमण कर उसकी बस्ती को जला दिया । माधोसिंह को कैद कर लिया गया । (फ्रीडम स्ट्रगल इन उत्तरप्रदेश के पृष्ठ संख्या 115 , 134 व 135 पर इन घटनाओं का उल्लेख मिलता है) राजा नरपति सिंह की गतिविधियां व् मारकाट देखकर फिरंगी दहल गए । देश के स्वतंत्रता सेनानी व बागी फौजी सिपाही माधौगंज में जमा होने लगे । फैजाबाद के महान स्वतंत्रता सेनानी मौलवी लियाकत अली वीके जनपद में आ गए, दिल्ली के बादशाह शाह जफ़र को अंग्रेजों ने कैद कर लिया और एक क्रूर अंग्रेज अफसर हडसन ने बादशाह के सामने ही उनके दो बेटों को मौत के घाट उतार दिया । बादशाह का बड़ा शहजादा फिरोजशाह आँख बचाकर भागकर संडीला पहुंचा और राजा नरपति सिंह से मुलाक़ात की। शिवराजपुर के राजा सती प्रसाद सिंह तथा बांगरमऊ के ज़मीदार जसा सिंह आकर राजा के सहयोगी बने । राजा के इशारे पर फिरोजशाह संडीला के वीर लक्कड़ शाह ने संडीला के आस-पास का क्षेत्र स्वंतत्र कर लिया तथा मौलवी लियाकत अली ने बिलग्राम, सांडी, पाली व् शाहाबाद तक अंग्रेज परस्तों को मार गिराया। (इसका वर्णन हरदोई गजेटियर में मिलता है) बेरुआ स्टेट के सरबराकार गुलाब सिंह लखनऊ, रहीमाबाद व संडीला की लड़ाई लड़ते हुए नरपति सिंह के सहयोग में आ मिले । माधोगंज के रुइया नरेश नरपति सिंह ने अपनी सेना के साथ अंगेजी फौज का डटकर मुकाबला किया और 55 अंग्रेजी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और लगभग इतने ही सैनिकों को घायल कर उन्हें वापस लौटने पर मजबूर कर दिया था। इस लड़ाई में विक्टोरिया के ममेरे भाई ब्रिगेडियर होप को मार गिराया था। जिसकी मौत की खबर लंदन में पहुंचने पर वहां सात दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया था । माधौगंज में स्थित रुइया नरेश श्री नरपति सिंह का जीर्ण-शीर्ण हालत में पहुंचा किला और लड़ाई में मारे गए अग्रेज अफसरों की कब्रे आज भी माधौगंज, के पशु चिकित्सालय के पीछे स्थित आज़ादी के लिए हुई जंग की मूक गवाही दे रही हैं ।स्वतंत्रता संग्राम के वीर सेनानी नरपति सिंह की मूर्ति लगवाने हेतु देश के गृह मंत्री माननीय राजनाथ सिंह जी ने आर्थिक सहयोग दिया ,तत्कालीन जिलाधिकारी श्री अवधेश सिंह राठौर जी ने समाज के सहयोग से रुइया गढ़ी का जीर्णोद्धार कराया ।
1858 नवम्बर के प्रथम सप्ताह में जनपद मल्लावां लगभग
पूर्णरूप से सक्रिय अंग्रेज विरोधी तत्वों से साफ कर दिया गया । दिनांक 28 अक्टूबर 1858 के उपरांत जनपद मल्लावां का अस्तित्व समाप्त हो गया था और शासक किला छोडकर भाग गये थे। इस तिथि के
उपरांत मुख्यालय हरदोई बनाया गया और प्रशासन पुर्नसंगठित किया गया अतः 28 अक्टूबर इस नये जनपद का स्थापना दिवस माना गया। अंग्रेजी सेनाओं के जाने के बाद जनपद का
सामान्य प्रशासन पुर्नसंगठित किया गयामल्लावां के
स्थान पर मुख्यालय हरदोई बनाया गया क्योंकि यह मल्लावां की तुलना में केन्द्र में
स्थित था।
घंटाघर –हरदोई |
विक्टोरिया मेमोरियल हरदोई-जिस प्रकार रूमी दरवाज़ा, लखनऊ शहर का हस्ताक्षर भवन है ठीक वैसे ही यह विक्टोरिया भवन जनपद हरदोई का हस्ताक्षर शिल्प भवन है । परतंत्र भारत देश 1877 ई में जब महारानी विक्टोरिया सम्राज्ञी घोषित की गईं तो भारतवर्ष में दो स्थानों पर इतिहास में समेटने के लिये विक्टोरिया मेमोरियलभवनों का निर्माण कराया गया उनमें से एक तत्कालीन कलकत्ता जो आज कोलकाता है और दूसरा हरदोई में। वर्तमान में इस भवन में हरदोई क्लब संचालित है।
श्री बाबा मंदिर- हरदोई में श्री बाबा
मंदिर प्रमुख धार्मिक स्थान हैं।जहाँ बहुत दूर से लोग मनौती मानने साते है कहा
जाता है बाबा के कारण ही हरदोई में फांसी नहीं लगाई
जाती है इस मंदिर के पास एक पुराना टीला भी है, जिसे हिरण्याकश्यप के महल
का खंडहर कहा जाता है।
श्रवण देवी मंदिर- हरदोई जनपद मुख्यालय श्रवण देवी मंदिर स्थान
हैं सती जी का कर्ण भाग यहा पर गिरा इसी से इस स्थान का नाम श्रवण दामिनी देवी
पड़ा । इस स्थान पर प्रति वर्ष क्वार व चैत मास (नवरात्री) में तथा असाढ़पूर्णिमा
में मेला लगता है।
सकाहा शंकर मंदिर:-वर्षो पूर्व इस क्षेत्र में तैनात रहे कोतवाल द्वारा कराया गया था। इसके संबंध में यह भी किंवदंती है कि आजादी से कई वर्ष पूर्व लाला लाहौरीमल नामक एक व्यापारी के पुत्र को फांसी की सजा हुयी थी जिसकी माफी के लिये लाला लाहौरीमल ने यहां दरकार लगायी थी और मनौती पूरी होने के पश्चात उनके द्वारा यहां पर शंकर जी का मंदिर बनवाया गया । कालान्तर में यहां पर आवासीय संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना हुयी जो आज भी सुचारू रूप से गतिमान है। वर्तमान में इस मंदिर की व्यवस्था आदि का काम स्थानीय महंत श्री उदयप्रताप गिरि द्वारा देखा जा रहा है।
मल्लावां:-मल्लावां 28 अक्टूबर 1858 से पूर्व जनपद का जिला केंद्र था एतिहासिक धरोहरों को सम्हाले यह स्थान अति प्राचीन है -यही पर सुनासीर मंदिर स्थित है -यहाँ के मूल निवासी मिश्र बंधुओ ने खोए हुए हिंदी भाषा के सम्मान को "बंधू विनोद" नामक ग्रन्थ लिखकर पुनः वापस दिलाया - सन
१९१३ में क्रिशनबिहारी मिश्र और शुकदेव बिहारी मिश्र और
गणेश बिहारी मिश्र नामक तीन भाइयों ने मिश्र "
बंधू विनोद " नामक ग्रन्थ लिखा था, उस समय इसको तीन भागो
में निकाला था बाद में इसका चौथा भाग भी
प्रकाशित हुआ था, अब यह पुनः दो
भागो में छपकर आया है | इस ग्रन्थ में हिंदी के ५००० कवियो का वर्णन है
इन्होने नवरत्नो के नाम से हिंदी के तुलसी, सुर , देव,
बिहारी , भूषण , मति राम , केशव,
कबीर , चंद , इन नौ कवियो को लिया , तथा
हरिश्चंद की भी आलोचना की;
विशेषताएँ :
“मिश्रबंधुविनोद “ में लेखकों की राजनीतिक , सामाजिक , साहित्यिक , गतिविधयो
के बारे में बताया है, इससे उस युग की भूमिका का स्वरूप सामने आता है |
इस रचना में अनेक अज्ञात कवि प्रकाश में आये है,
खोज पूर्ण विवरण कई है |
इसमें ८ से आधिक खंड बनाये गए है तथा अपने
वक्तव्य भी दिए गए है |
इस रचना में
कवियो की रचनाओ के उदाहरण तथा उनकी रचनाओ
का एक अच्छा स्वरुप प्रस्तुत हुआ है
हिंदी साहित्य के इतिहास में पहली बार आलोचनात्मक
द्रस्टी का प्रयोग हुआ है |
सुनासीर
नाथ(मल्लावां ) :- जहां देवताओ के राजा इंद्र ने तपस्या की थी और भगवान शंकर प्रकट हुए थे –मुग़ल आक्रमण के समय इस मंदिर पर भी
आक्रमण हुआ – शिव लिंग पर आरा चलाया गया तो उसमे से खून की धारा बह निकली –फिर भी आताताइयो ने आरा चलाना बंद नहीं किया तो ततैयो का भारी समूह निकल कर मुग़ल सेना पर टूट पड़ा –सेना
को भागना पड़ा –आज भी आरा के निशान शिव लिंग पर देखे जा सकते है
जनपद हरदोई के सम्बन्ध में एक और आश्चर्यजनक
तथ्य बताना चाहता हूं। इस जनपद में ‘विलग्राम‘ नाम का एक उपखंड है जिसके बारे में यह बताया
जाता है कि यह मूल रूप से ‘विलग राम‘ शब्द का अपभ्रंश है । ‘विलग राम’ अर्थात राम से विलग रहने वाला। 1909 में यहां के निवासी एक मुसलमान, सैयद हुसैन बिलग्रामी को महारानी विक्टोरिया के
वादे को लागू करने के लिए व्हाइट हॉल में नियुक्त किया गया, जिन्होंने मॉर्ले मिण्टो सुधार में तथा कालान्तर में मुस्लिम लीग की स्थापना में सक्रिय भूमिका निभाई। विलग्राम
तहसील क्षेत्रान्तरर्गत मोहक साण्डी पक्षी अभ्यारण स्थित है साण्डी पक्षी अभयारण्य की स्थापना 1990 ई. में हुई थी। यह अभयारण्यलखनऊ से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह अभयारण्य लगभग तीन किलोमीटर के क्षेत्र में
फैला हुआ है। यहां पक्षियों की अनेक प्रजातियां देखी जा सकती है। यहां घूमने के
लिए सबसे उचित समय दिसम्बर से फरवरी है।
जिले का इतिहास महाभारत
काल में- कृष्ण के भाई बलराम ब्राह्मणों के साथ
पवित्र स्थानों के दर्शन के लिए निकले, नीमखार की ओर जाते
हुए, उन्होने देखा कि कुछ
ऋषि पवित्र ग्रन्थों का पाठ सुनने में निमग्न हैं और उनका स्वागत -सत्कार उन्होंने नहीं किया तो बलराम ने क्रोध वश ऋषि
के सिर को कुश नामक घास से काट दिया और फ़िर पश्चाताप से भर कर उस स्थान को बिल नामक दैत्य से छुट्कारा दिलाया ;
हत्याहारण तीर्थ,
हरदोई:- हत्याहारण तीर्थ जनपद हरदोई की सण्डीला तहसील में पवित्र नैमिषारण्य परिक्रमा क्षेत्र में स्थित है। यह तीर्थ लखनऊ से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तीर्थ के संबंध में यह
( हत्याहरण तीर्थ, हरदोई)
मान्यता है कि भगवान राम भी रावण वध के उपरांत
ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त होने के लिये इस सरोवर में स्नान करने आये थे। रावण बध के बाद भगवान
श्रीराम को ब्राह्मण की हत्या का पाप लग गया। इसके लिए राम को देश भर के तीर्थो
में स्नान करने को कहा गया। हत्याहरण तीर्थ में स्नान करने के बाद राम को
ब्राह़मण हत्या के पाप से मुक्ति मिली। इसी घटना के बाद इसका नाम हत्याहरण तीर्थ
पडा। हत्याहरण तीर्थ से करीब 15 किलोमीटर पूर्व में अतरौली थाने के निकट जंगलीशिव तीर्थ स्थान है। पर
प्रतिमाह अमावश को मेला लगता है। तमाम श्रद्धालु जंगलीशिव तीर्थ में मार्जिन करके
रोजाना पुण्य कमाते हैं। जंगलीशिव तीर्थ से 5 किलोमीटर पूर्व में भरावन से आगे चलने पर आस्तिक मुनि का प्राचीन मंदिर है।
इसी स्थान पर आस्तिक मुनि ने कई वर्षो तक तपस्या की थी। अतरौली थानाक्षेत्र में
ही भगवान बाणेश्वर महादेव मंदिर व तीर्थस्थान सोनिकपुर स्थित है। इस मंदिर का
ऐतिहासिक महत्व है।
मार्कंडेय स्थल :-हरदोई का अति प्राचीन मार्कंडेय मंदिर एवं कमल सरोवर-यह वही कमल सरोवर है जहा महाभारत काल में महाराज युधिस्ठिर ने सूर्य उपासना की तथा भगवान भास्कर प्रकट हुए भीम का अजगर से युद्ध भी इसी द्योत वन में हुआ -साभार महाभारत ग्रन्थ से
(मार्कंडेय आश्रम स्थित –महाभारत कालीन सरोवर जहाँ युधिस्ठिर ने सूर्य उपासना की- साथ में मार्कंडेय मंदिर )
बालामऊ
बालामऊ, हरदोई
ज़िला के प्राचीन शहरों में से है। माना जाता है कि इस शहर की स्थापना अकबर काल के अन्तिम समय में बामी मिरमी ने की थी। वर्तमान समय में
इस जगह को बामी खेरा ने नाम से जाना जाता है। यह शहर ज़िला मुख्यालय के दक्षिण की
ओर तथा सांदिला के उत्तर-पूर्व से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
शहर के समीप ही सीतापुर
ज़िला है जो नैमिषारण्य के लिए प्रसिद्ध
है। यह जगह धार्मिक स्थल के रूप में जानी जाती है।
माधोगंज:-राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित माधोगंज, हरदोई ज़िले का एक प्राचीन शहर है। यह शहर
ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस शहर की स्थापना स्वतंत्रता
सेनानी श्री नरपति सिंह ने की थी। इन्होंने देश को स्वतंत्रता दिलाने में अपना
महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। यहां स्थित रुइया गढ़ी क़िला, जो कि वर्तमान में नष्ट हो चुका है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक क्षणों
का गवाह रहा है। वर्तमान समय में यह क़िला पुरातात्विक विभाग, उत्तर-प्रदेश की देख-रेख में है। माधोगंज हरदोई
के दक्षिण से लगभग 34 किलोमीटर, कानपुर से 75 किलोमीटर और लखनऊ से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
पिहानी
हरदोई ज़िला स्थित पिहानी एक ऐतिहासिक जगह है। यह जगह हरदोई, ज़िला मुख्यालय के उत्तर-पूर्व से
27 किलोमीटर
की दूरी पर स्थित है। यह जगह का नाम पर्शियन शब्द पिनहानी से लिया गया है। जिसका
अर्थ होता रहने की जगह। माना जाता है कि पूर्व समय में यह स्थान सघन जंगलों से
घिरा हुआ था। शेरशाह ने हुमायूँ के साथ हुए युद्ध में उनसे बचने
के लिए इस जगह पर शरण ली थी। सदारजहां, अकबर शासक के मंत्री का पिहानी से
नजदीकी सम्बन्ध रहा है। उनका मकबरा और चित्रकला यहां के प्रमुख आकर्षण केन्द्रों
में से हैं। शिवसिंह सरोज तथा हिंदी साहित्य के प्रथम
इतिहास तथा ऐतिहासिक तथ्यों एवं अन्य पुष्ट प्रमाणों के आधार पर भक्त कवि रसखान की जन्म-भूमि पिहानी ज़िला हरदोई माना जाता है ;
धोबिया(धौम्य ऋषि ) आश्रम :-पिहानी कसबे से 6 किलोमीटर पर धोबिया(धौम्य ऋषि ){1. धौम्य एक ऋषि, जो देवल के भाई और पांडवों के पुरोहित थे और जो अब पश्चिमी आकाश में स्थित एक तारे के रूप में माने जाते हैं।2. धौम्य एक ऋषि जो महाभारत के अनुसार व्यघ्रपद नामक ऋषि के पुत्र और बहुत बड़े शिव-भक्त थे और शिव के प्रसाद से अजर, अमर और दिव्य ज्ञान संपन्न हो गये थे।3. धौम्य एक ऋषि का नाम जिन्हें 'आयोद' भी कहते थे। इनके आरुणि, उपमन्यु और वेद नामक तीन शिष्य थे।4. धौम्य एक ऋषि, जो पश्चिम दिशा में तारे के रूप में स्थित माने जाते हैं।
5. धौम्य ऋषि की कहानी है जिनके आश्रम में आरुणि पढ़ा करते थे। आरुणि ने ही एक रात मूसलाधार बारिश के पानी को आश्रम में प्रवेश करने से रोकने के लिए खुद को रात भर मेढ़ पर लिटाए रखा और आरुणि के इस कठिन कर्म से प्रभावित होकर आचार्य धौम्य ने उनका नाम रख दिया था, उद्दालक आरुणि यानी उद्धारक आरुणि।}
आश्रम स्थित है अति प्राचीन रमणीय स्थल है जहा आज भी लगभग 20 हेक्टेयर क्षेत्रफल में दर्शनीय प्राचीन जंगल है -यही पर अनुपम छठा को बिखेरते प्राकृतिक जल स्रोत है जो गोमती नदी के सहायक जल श्रोतो के रूप में कार्य करते है
धोबिया(धौम्य ऋषि ) आश्रम :-पिहानी कसबे से 6 किलोमीटर पर धोबिया(धौम्य ऋषि ){1. धौम्य एक ऋषि, जो देवल के भाई और पांडवों के पुरोहित थे और जो अब पश्चिमी आकाश में स्थित एक तारे के रूप में माने जाते हैं।2. धौम्य एक ऋषि जो महाभारत के अनुसार व्यघ्रपद नामक ऋषि के पुत्र और बहुत बड़े शिव-भक्त थे और शिव के प्रसाद से अजर, अमर और दिव्य ज्ञान संपन्न हो गये थे।3. धौम्य एक ऋषि का नाम जिन्हें 'आयोद' भी कहते थे। इनके आरुणि, उपमन्यु और वेद नामक तीन शिष्य थे।4. धौम्य एक ऋषि, जो पश्चिम दिशा में तारे के रूप में स्थित माने जाते हैं।
5. धौम्य ऋषि की कहानी है जिनके आश्रम में आरुणि पढ़ा करते थे। आरुणि ने ही एक रात मूसलाधार बारिश के पानी को आश्रम में प्रवेश करने से रोकने के लिए खुद को रात भर मेढ़ पर लिटाए रखा और आरुणि के इस कठिन कर्म से प्रभावित होकर आचार्य धौम्य ने उनका नाम रख दिया था, उद्दालक आरुणि यानी उद्धारक आरुणि।}
आश्रम स्थित है अति प्राचीन रमणीय स्थल है जहा आज भी लगभग 20 हेक्टेयर क्षेत्रफल में दर्शनीय प्राचीन जंगल है -यही पर अनुपम छठा को बिखेरते प्राकृतिक जल स्रोत है जो गोमती नदी के सहायक जल श्रोतो के रूप में कार्य करते है
संडीला
संडीला हरदोई ज़िला का एक ख़ूबसूरत नगर है। यह
नगर हरदोई के दक्षिण से लगभग 50 किलोमीटर और लखनऊ के उत्तर-पश्चिम से 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस जगह की स्थापना ऋषि शांडिल्य ने की थी। उन्हीं
के नाम पर इस जगह का नाम रखा गया है। कई प्राचीन इमारतें, मस्जिद और बाराखम्भा आदि इस शहर का प्रमुख
आकर्षण है।
(शीतला माता का प्राचीन मंदिर)
गांधी भवन
सन 1928 में साइमन कमीशन के भारत आने के बाद इसका विरोध करने के लिये महात्मा गांधी ने समूचे भारत में यात्रा कर जनजागरण किया । इसी दौरान 11 अक्टूबर 1929 को गांधी जी ने हरदोई का भी भ्रमण किया। सभी
वर्गों के व्यक्तियों द्वारा महात्मा गांधी जी का स्वागत किया तथा उन्होंने टाउन
हाल में 4000
से
महात्मा गांधी जी के भृमण
स्थलों पर स्मारकों का निर्माण किया गया जिसमें हरदोई में गांधी भवन का निर्माण हुआ । इस भवन का रख रखाव महात्मा गांधी जनकल्याण समिति द्वारा किया जाता है। इस समिति के सचिव श्रीअशोक कुमार शुक्ल (तात्कालिक नगर मजिस्ट्रेट -हरदोई) ने इस परिसर में एक प्रार्थना कक्ष स्थापित कराया ,प्रार्थना
कक्ष महात्मा जी की विश्राम स्थली रहे कौसानी में स्थापित अनासक्ति आश्रम के समरूप है
आपके द्वारा हरदोई के बारे मे जो जानकारियां सग्रहित की गई है बास्तव मे आप उसके लिए सराहना के काबिल है, मै आपके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ
जवाब देंहटाएंसंपादक
आई एन ए न्यूज़
धन्यवाद ina news-हरदोई की जाकारी आप सबके बिना अधूरी है -आप सबका साथ मिलाता रहे तो हरदोई रचनात्मकता की ओर अवश्य बढेगा
हटाएंहरदोई का इतिहास,और उसकी छोटी से छोटी जानकारी मुझे मिली,इसके लिये मैं आपको कोटि कोटि धन्यवाद करता हूँ,क्या आप यह भी बता सकते है,खाद्दीपुर के राजा और उनकी वर्तमान में जो पुत्री है,उनका नाम
जवाब देंहटाएंMe bhi katyari ke raja ruk mangal ji ke bare janna chata hu
हटाएंहरदोई के सवाइजपुर तहसील के परगना-कटियारी के गाृम बूंदापुर के मूल निवासी व यही जन्मे लाट सुबेदार स्व. रामेश्वर दयाल शुक्ला के पुत्र जेसीओ सुनील कुमार शुक्ला श्रीनगर सेना मुख्यालय पर हुए आतंकवादी हमले में शहीद हो गए थे।यह बात 03.11.1999 की है।उक्त गाृम में शहीद सुनील कुमार शुक्ला के नाम की जमीन पार्क के लिए आवंटित की गयी थी और आज 19 वर्षो में आज तक पार्क नही बन सकता में चाहता हूं कि जनपद का नाम ऊंचा हो और वहां पार्क का जल्द निर्माण किया जायेगा।
जवाब देंहटाएंनिर्माण करवाया जाये में मिडिया को धन्यवाद दूंगा।
हटाएंसर्व प्रथम तो हरदोई के स्वर्णिम इतिहास हेतु सम्पादक जी को सादुवाद ..! दूसरे धीरू सिंह जी के प्रश्न का जबाव ..खद्दीपुर की रानी बेटी का नाम राजकुमारी रोहिणी है ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबूँदापुर गाँव मे शहीद नायब सुबेदार सुनील कुमार शुक्ला के पार्क के लिए बीस साल पहले आवंटित जमीन पर अभी तक पार्क नही बना है और ना ही जमीन पर कोई निशान या पहचान बनायी गयी हा शहीद पार्क के नाम से जमीन खतौनी मे दर्ज है,कृप्या मेरा आगृह है इतिहास संजोने वालो से कि अधिक जानकारी के लिए मेरे व्हाटसअप नम्वर पर सम्पर्क करें।मो.9871226701 अजय कुमार शुक्ला रा.सवर्ण आर्मी,जिला अध्यक्ष,शाहजहाँपुर एवं पूर्व भाजुयूमो नगर महामंत्री अल्हागंज।
जवाब देंहटाएंकृपया खद्दीपुर से संबन्धित जानकरी दे
जवाब देंहटाएंGood
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपार्क बनेगा सुनील शुक्ला का पास हो गया है
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमहाराज सल्हीय सिंह और मल्हीय सिंह का कोई जिक्र ही नही।
जवाब देंहटाएंBhut jankari mili
जवाब देंहटाएं